How are you guys?? hope you all are well and doing well in your life..
How much more difficult it is to think to write every day. Being a writer is as difficult as being a scientist who has to discover something new. It is also a kind of discovery. Because the subject is the foundation of any article, if we do not have the foundation, then we cannot build the building. The writer always has to be open-minded, because new ideas can come to his mind, which inspire him to write. The mind becomes like a closed box which is filled from inside but the box is locked from outside and whose key the writer has to find, now the biggest question for him is where the key will be and the key writer. To be called a writer is as easy as it is to be called a subject and the stuff kept inside that box is the words about that subject. It is as difficult as it is to outline an article. He can give life to his article and the reader gets pleasure from reading it. Sometimes the words of the writer are so difficult that the reader does not understand them. He does not understand the meaning of that article very well. The most important thing for the writer is the selection of the title for the article.
हर दिन लिखने के लिए सोचना कितना अधिक मुश्किल है एक लेखक होना उतना ही मुश्किल है जितना की एक वैज्ञानिक होना जिसको किसी नई चीज़ की खोज करनी है यह भी एक प्रकार की खोज ही है लेखक के लिए सबसे मुश्किल है लिखने के लिए एक विषय खोजना क्युकी विषय किसी भी लेख की नीव है अगर हमारे पास नीव नहीं है तो हम ईमारत नहीं बना सकते है लेखक को हमेशा खुले विचारो का होना पड़ता है क्युकी उसके दिमाग में नए नए विचार आ सके जो उसे लिखने के लिए प्रेरित करे कभी कभी लेखक का दिमाग एक ऐसे बंद बक्से के सामान हो जाता है जो बक्सा अंदर से तो भरा हुआ है लेकिन उस बक्से के बहार से ताला लगा हुआ है और जिसकी चाबी लेखक को ढूंढ़नी है अब उसके लिए सबसे बड़ा सवाल ये है की चाबी कहा होगी और चाबी लेखक के लिए विषय के सामान है और उस बक्से के अंदर रखा सामान उस विषय के बारे में सब्द है लेखक कहलाना जितना आसान है उतना ही काठीन है किसी लेख को रूप रेखा देना लेखक को अपने विचारो से सब्दो का कुछ ऐसा चयन करना पढता है जिससे की वह अपने लेख मे जान डाल सके और पाठक को उसे पढ़ने से आनंद आये कई बार लेखक के शब्द इतने कठिनहोती है कि वह पाठक को समझ नही आते है और वह उस लेख का अर्थ भली भाति नही समझ पाता है। लेखक के लिए सबसे अहम बात है लेख के लिए शिर्षक का चयन
The selection of the title should be such that most of the article can be understood by the readers only by the selection of the title, therefore it is necessary for any writer to select the title accurately. If we take the news coming in the newspaper for example, then their titles They are accurate and more than half of the news is understood by the reader through the same title. There are many readers who are only interested in the title. First, if they find the title interesting, then they will read the whole article, otherwise they will read the entire article. There is no importance left, this is the main reason for writing this article, the box that I talked about in the beginning, a while ago, that box was my mind, the key of which was lost somewhere, due to which I had to write this article, although it is related to all the other articles. It is different from because the arguments made in this article may not match with your perception, yet it does not matter, if the ideology and thoughts of all human beings become the same, then man will never be able to develop himself, but then he is only human. Will not be called because thinking differently makes us better than each other..
शिर्षक का चयन ऐसा होना चाहिए की शीर्षक के चयन से ही लेख का अधिकतर हिस्सा पाठको के समझ मे आ जाता है इसलिए किसी भी लेखक लिए शीर्षक का सटिक चयन आवश्यक है अगर हम उदाहरण के लिए अख़बार में आने वाली खबरो को ले तो उनके शिर्षक एकदम सटिक होते है और आधी से ज्यादा खबर पाठक उसी शीर्षक के माध्यम से समझ जाता है कई पाठक ऐसे भी होते है जो पाठक सिर्फ केवल शीर्षक में दिलचस्पी लेते है पहले अगर उन्हें शीर्षक दिलचस्प लगता है तभी वह पुरे लेख को पढ़ेंगे वरना उस पूरे लेख का कोई महत्व नहीं रह जाता है इस लेख को लिकने का मुख्य कारन यही है शुरुआत में मैंने जिस बक्से की बात की थोड़ी देर पहले वो बक्शा मेरा ही दिमाग था जिसकी चाबी कही खो गयी थी जिस कारण मुझे यह लेख लिखना पड़ा हालांकि यह बाकि सारे लेखो से भिन्न है क्योंकी इस लेख मे किए गए तर्क हो सकता आपकी धारणा से मेल न खाते है फिर भी कोई बात नही अगर सारे ही इंसानो की विचारधारा और विचार एक जैसे होने लगेग तो इंसान कभी अपना विकास नही कर पायेगा बल्कि फिर तो वह इंसान ही नही कहलाएगा क्योकि भिन्न भिन्न तरह से सोचना ही हमे एक दूसरे से बेहतर बनाता है
उम्मीद है, आपको ये लेख पसंद आएगा और अपने भी विचार मेरे साथ साझा करे